परिवर्तन
नित - सत्य, अटल और अविघटन
क्यों कि सृष्टि में जीवन का
मूल है परिवर्तन
सूर्य का उगना और फिर छिपना
अपनी धुरी पर पृथ्वी का घूमना
कली का पुष्प में बदलना
फिर खुशबू से महकना
पानी की लहरें और हवा का गुजरना
फलों का पकना, पंक्षियों का चहकना
बर्फ का पिघलना
फिर नदियों में बदलना।
समुंदर का गर्मी से दहकना
फिर वर्षा बन यहाँ वहाँ बरसना
जमीं में बीज का दुबकना
फिर अंकुरित होकर चुपचाप निकलना।
दिन-दिन गुजर सदियों में बदलना
और जानवर का इसां में संवरना
जीवन-मरण और उम्र का ढलन
सबको करता प्रभावित
इस सम्पूर्ण भौतिक जगत में
यह समय परिवर्तन
पर क्या समय का प्रभाव
है निष्क्रिय, अप्रभावित
या नहीं चलता कोई जोर उसका
मात्र उसके हृदय पर।
इतना समय गुजरा उसके साथ
पर धीरे-धीरे परिवर्तन के साथ
वो मुझे अच्छी लगने लगी
हृदय में मेरे बसने लगी।
ये था बस एक तरफा परिवर्तन
और हाँ, मेरी खुशियों का संकलन
पर कठिन है करना
उसके हृदय का आंकलन
क्योंकि समय ने किया
बस मेरा हृदय परिवर्तन
पर न जाने क्यों ? हे ईश्वर।
उसका हृदय न बदल सका
ये सशक्ति समय-परिवर्तन।
: - गोपाल सिंह बंधी
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