हिंदी की अन्य कविताएं
क्यूँ इठलाती है तू यूँ
हवा के जरा से झोंके से
कभी झूमते प्रसन्नता में
कमर अपनी मटकाती है
तो कभी खड़ी रहती सीधे
गम्भीर होकर लम्बी ज्वाला में
मैं बैठा सुदूर निहारता तुझे
और पास तेरे उड़कर आता हूँ।
हृदय में उठते प्यार का मैं
खुद से वादा निभाता हूँ।
ज्वाला में खुद ही जलने वाली
कैसे मेरे प्रेम में भला
तेरा हृदय भी जलता होगा ?
मौत पर मेरी कैसे तेरे
आँखों से अश्क निकलता होगा ?
पर तेरे बिन यूँ मर मर कर
जिन्दगी जीने से बेहतर होगा
कि मौत को तू मेरी
मुझे जी लेने दे।
बस, एक बार, एक बार
खुद को तू मुझे
छू लेने दे,
मुझे जी लेने दे
मुझे जी लेने दे।
:- गोपाल सिंह बंधी
Other English Poems :
0 comments:
Post a Comment