प्यार के अधिकार में
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तेरे बिन
मैं कुछ नहीं
न बिन तेरे
मैं कुछ भी जिया
पर क्या हक नहीं
तूने मुझे दिया
रूठ जाने का मुझे
तेरे प्यार में
तेरे मनाने के इस
लम्बे इन्तजार में
क्या चाहत भी मेरी
अब कुछ भी नहीं
आपस की हमारी
इस छोटी सी तकरार में
क्या अहंकार का तेरे
शोर मचा है इतना
जो सुन न सकी तू
खड़ा लेकर अपनी ख़ामोशी को
मुस्कुराकर तेरे सामने
अपनी माफ़ी के इजहार में
फिर तू कैसे प्यार में ?
और मैं कैसे प्यार में ?
मैं कुछ नहीं
न बिन तेरे
मैं कुछ भी जिया
पर क्या हक नहीं
तूने मुझे दिया
रूठ जाने का मुझे
तेरे प्यार में
तेरे मनाने के इस
लम्बे इन्तजार में
क्या चाहत भी मेरी
अब कुछ भी नहीं
आपस की हमारी
इस छोटी सी तकरार में
क्या अहंकार का तेरे
शोर मचा है इतना
जो सुन न सकी तू
खड़ा लेकर अपनी ख़ामोशी को
मुस्कुराकर तेरे सामने
अपनी माफ़ी के इजहार में
फिर तू कैसे प्यार में ?
और मैं कैसे प्यार में ?
रूठना-मनाना
तो आता है
हम दोनों के
प्यार के अधिकार में।
तो आता है
हम दोनों के
प्यार के अधिकार में।
-: गोपाल सिंह बंधी
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