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मन
तू किसका है ?
मेरा है
या उसका है
पक्ष लेता तू
मेरा कभी
तो लेता कभी
उसका है।
भ्रम में
पड़ा है तू
या भ्रम को
बस मुझे दिखलाता है।
समझ नहीं ये आता
तू बातें कैसी बतलाता है।
उसके दिल की बात
तू तो झट से
मुझसे कहे जाता है
पर मेरे ......
मेरे दिल की बात
कहने में तू हकलाता है।
कभी हँसता है
कभी रुलाता है।
कभी आसमान में ऊपर
पक्षी सा उडाता है
कभी बन का बाज
निर्दयी सा तू
लाकर जमीं पर
मुझे गिराता है।
कभी हर वक्त उसका
अहसास मुझे कराता है
तो कभी भीड़ में भी
तन्हा मुझे बताता है।
अरे मन ! तू सच-सच
अपने मन की बता
वास्तव में........
तू किसका है ?
मेरा है
या उसका है।
पक्ष लेता तू
मेरा कभी
तो कभी लेता
उसका है।
अरे मन ! तू किसका है ?
:- गोपाल सिंह बंधी
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